चूमते ही बदनाम हो गया जीना यूं दुश्वार हो गया , लेखक नदीम आलम

 कहानी एक मच्छर की 


भिन्न भिन्न भिन्न भिन्न करता हूँ 

हर लम्हा तुम पर मरता हूँ , 

काटता फिरता बेशक हूँ मैं

प्यार जो इतना करता हूँ  । 


चूमता हूँ मैं बारी-बारी 

देकर जिस्म पर लाली सारी ,

ना हूँ मैं कोई डेंगू मच्छर 

ना जान चाहिए मुझे तुम्हारी । 


जग सोता और मैं जगता हूँ

एक बयां हक़ीक़त करता हूँ ,

खो ना जाओ सब नींद में 

हर वार सही से करता हूँ । 


चूमते ही बदनाम हो गया 

जीना यूं दुश्वार हो गया ,

और करते-करते प्यार तुम्ही से

फिर मरने को तैयार हो गया । 


भिन्न भिन्न भिन्न भिन्न करता हूँ 

हर लम्हा तुम पर मरता हूँ।

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